Hindi Poetry || (हिंदी कवितायेँ)

[su_note]क्या खता हमसे हुई की खत का आना बंद है
आप हैं हमसे खफा या.. डाक-खाना बंद है।[/su_note]
———
[su_note]भीगी नहीं थी मेरी आँखें कभी वक़्त के मार से..
देख तेरी थोड़ी सी बेरुखी ने इन्हें जी भर के रुला दिया।[/su_note]
———
[su_note]दुआ करो, मैं कोई रास्ता निकाल सकूँ
तुम्हें भी देख सकूँ, खुद को भी सम्भाल सकूँ।[/su_note]
———
[su_note]नक़ाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है,
समझ कर फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है।[/su_note]
———
[su_note]दिल ने कहा भी था मत चाह उसे यू पागलो की तरह,
कि वो मगरूर हो जायेगा तेरी बेपनाह मुहब्बत देखकर।[/su_note]
———
[su_note]भीगी नहीं थी मेरी आँखें कभी वक़्त के मार से,
देख तेरी थोड़ी सी बेरुखी ने इन्हें जी भर के रुला दिया।[/su_note]
———
[su_note]ये ना पूछना ज़िन्दगी ख़ुशी कब देती है,
क्योकि शिकायते तो उन्हें भी है जिन्हें ज़िन्दगी सब देती है।[/su_note]
———
[su_note]थोड़ा दर्द भी सहलो महोबत के लिए,
थोड़ा इश्क़ भी करलो सेहत के लिए।[/su_note]
———
[su_note]है छोटी सी ज़िन्दगी तकरारें किस लिए,
रहो एक दूसरे के दिलों में यह दीवारें किसलिए।[/su_note]
———
[su_note]ख़बर जहां मिलती है अपने होने की,
हम उस मंजिल पर भी खोए खोए हैं।[/su_note]
———
[su_note]गुनाह इश्क़ अगर है तो ग़म नहीं,
वो आदमी ही क्या जो एक भी ख़ता न करे।[/su_note]
———
[su_note]लो मैं आखों पे हाथ रखत हूँ,
तुम अचानक कहीं से आजाओ।[/su_note]
———
[su_note]लगता है हम ही अकेले हैं समझदार,
हर बात हमें ही समझाई जा रही है।[/su_note]
———
[su_note]निगाह-ए-इश्क़ का अजीब ही शौक देखा,
तुम ही को देखा और बेपनाह देखा।[/su_note]
———
[su_note]बहुत ज़ोर से हँसे थे हम, बड़ी मुद्दतों के बाद,
आज फ़िर कहा किसी ने, मेरा ऐतबार कीजिये।[/su_note]