Harivansh Rai Bachchan Poetry

Harivansh Rai Bachchan, well known by his pen title Bachchan, was an Indian poet of the Nayi Kavita literary activity ( enchanting upsurge ) of earlier 20th century Hindi poetry. Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi is very famous today Like Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita, Harivansh Rai Bachchan Madhushala, Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi Koshish karne etc. Harivansh Rai Bachchan Famous Lines is on Like Harivansh Rai Bachchan Poetry On Love, Harivansh Rai Bachchan Poetry On Friendship, Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi etc. Harivansh Rai Bachchan Hindi Poetry as a result of his translations of leading work. As a poet Harivansh Rai Bachchan well known for his poem Madhushala. Apart from Omar Khayyam’s Rubaiyat, Harivansh Rai Bachchan have written Hindi translations of Shakespeare’s Mac beth and also Othello along with the Bhagvad Gita. In November 1984 he has written his final poem ‘Ek November 1984’ on Indira Gandhi’s.

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Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi

[su_spoiler title=” मधुशाला ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४
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Harivansh Rai Bachchan Madhushala

[su_spoiler title=” मधुबाला ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला!
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है
मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!

इस नीले अंचल की छाया
में जग-ज्वाला का झुलसाया
आकर शीतल करता काया,
मधु-मरहम का मैं लेपन कर
अच्छा करती उर का छाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!

मधुघट ले जब करती नर्तन,
मेरे नुपुर की छम-छनन
में लय होता जग का क्रंदन,
झूमा करता मानव जीवन
का क्षण-क्षण बनकर मतवाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!

मैं इस आंगन की आकर्षण,
मधु से सिंचित मेरी चितवन,
मेरी वाणी में मधु के कण,
मदमत्त बनाया मैं करती,
यश लूटा करती मधुशाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
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Harivansh Rai Bachchan Poetry On Love

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
…और उसकी चेतना जब जगी
मौजों के थपेड़े लग रहे थे,
आर-पार-विहीन पारावार में
वह आ पड़ा था,
किंतु वह दिल का कड़ा था।
फाड़ कर जबड़े हड़पने को
तरंगो पर तरंगे उठ रही थीं,
फेन मुख पर मार कर अंधा बनातीं,
बधिर कर, दिगविदारी
क्रूर ध्वनियों में ठठाती
और जग की कृपा, करुण सहायता-संवेदना से दूर
चारो ओर के उत्पात की लेती चुनौती
धड़कती थी एक छाती।
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Harivansh Rai Bachchan Poetry On Friendship

[su_spoiler title=” Holi ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,

जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो !
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Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं –
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे –
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? –
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है !
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ..!!
[/su_spoiler]

Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई !!

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई !!
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Harivansh Rai Bachchan Madhushala

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला!
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है
मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
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Harivansh Rai Bachchan Famous Lines

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे…

चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे…

सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए…

छतों पर अब न सोते हैं
बात बतंगड अब न होते हैं…

आंगन में वृक्ष थे
सांझे सुख दुख थे…

दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था…
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Harivansh Rai Bachchan Poetry

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे…

इक साइकिल ही पास था
फिर भी मेल जोल था…

रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे…

पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था…

मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे…

अब शायद कुछ पा लिया है,
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया…

जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?

हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी,
आम हो जाती है।

एक सवेरा था,
जब हँस कर उठते थे हम…

और

आज कई बार,
बिना मुस्कुराये ही
शाम हो जाती है!!

कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते…

खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते… !!
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Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ !!
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Harivansh Rai Bachchan Poetry On Love

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
जिसके पीछे पागल हो कर
मैं दौड़ा अपने जीवन भर,
जब मृगजल में परिवर्तित हो, मुझ पर मेरा अरमान हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!
जिसमें अपने प्राणों को भर
कर देना चाहा अजर–अमर,
जब विस्मृति के पीछे छिपकर, मुझ पर वह मेरा गान हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!

मेरे पूजन आराधन को,
मेरे संपूर्ण समर्पण को,
जब मेरी कमज़ोरी कहकर, मुझ पर मेरा पाषाण हँसा!
तब रोक न पाया मैं आँसू!
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Harivansh Rai Bachchan Poetry On Friendship

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
सृष्टि के प्रारम्भ में
मैने उषा के गाल चूमे,
बाल रवि के भाग्य वाले
दीप्त भाल विशाल चूमे,

प्रथम संध्या के अरुण दृग
चूम कर मैने सुलाए,

तारिका-कलि से सुसज्जित
नव निशा के बाल चूमे,

वायु के रसमय अधर
पहले सके छू हॉठ मेरे
मृत्तिका की पुतलियॉ से
आज क्या अभिसार मेरा?

कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
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Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
इन्द्रधनु पर शीश धरकर
बादलों की सेज सुखकर
सो चुका हूँ नींद भर मैं
चंचला को बाहु में भर,

दीप रवि-शशि-तारकों ने
बाहरी कुछ केलि देखी,

देख, पर, पाया न कोई
स्वप्न वे सुकुमार सुन्दर

जो पलक पर कर निछावर
थी गई मधु यामिनी वह;
यह समाधि बनी हुई है
यह न शयनागार मेरा!

कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
[/su_spoiler]

Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
आज मिट्टी से घिरा हूँ
पर उमंगें हैं पुरानी,
सोमरस जो पी चुका है
आज उसके हाथ पानी,

होठ प्यालों पर झुके तो
थे विवश इसके लिए वे,

प्यास का व्रत धार बैठा;
आज है मन, किन्तु मानी;

मैं नहीं हूँ देह-धर्मों से
बँधा, जग, जान ले तू,
तन विकृत हो जाए लेकिन
मन सदा अविकार मेरा!

कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
[/su_spoiler]

Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी,
कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदघ से उमीद की बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
[/su_spoiler]

Harivansh Rai Bachchan Famous Lines

[su_spoiler title=”  ” open=”yes” style=”fancy” icon=”chevron” anchor=”” class=””]
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

उठी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चांद औ’ तारे,
उठा तूफान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे,
मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

गगन में गर्व से उठउठ,
गगन में गर्व से घिरघिर,
गरज कहती घटाएँ हैं,
नहीं होगा उजाला फिर,
मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

तिमिर के राज का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होनें सिर झुकाया है,
मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आई,
मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रभंजन, मेघ दामिनी ने
न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबित नहीं छोड़ा,
मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रलय की रात में सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर पड़ प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,
किसी के पथ में पलकें बिछाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
[/su_spoiler]

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